Thursday, June 17, 2010

सिंधिया ने ग्वालियर के किले के बदले झाँसी दी

प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने पिन्क्सेय को झाँसी डिविजन का कमिश्नर नियुक्त किया। उस समय झाँसी एक लुटा पिटा वेचिराग शहर था। जनरल रोज ने जो क़त्ल-ए-आम किया था, उसमें हजारों लोग मारे गए थे। जो लोग किसी तरह बच गए, उन्होंने दतिया में शरण ले ली थी। वो इतने डरे हुए थे कि झांसी का नाम सुनते ही काँप जाते थे। जब कभी उनके सामने झांसी का जिक्र आता तो वे बस यही कहते "झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार"। पिन्क्सेय ने झांसी को आबाद करने की बहुत कोशिस की पर वो सफल नहीं हुआ। अंत में जब अंग्रेजों से झांसी का राज्य नहीं सम्भला तो उन्होंने सन १८६२ में उसे सिंधिया को सौंप दिया। इसतरह झांसी ग्वालियर राज्य का एक भाग हो गया।
सिंधिया ने झांसी को फिर से बसाने में बड़ी मेहनत की। उसने लोगों का विश्वास जीतने के लिए अनेकों जनहित के कार्य किये, तब कहीं धीरे-धीरे लोगों का विश्वास सिंधिया पर हुआ और वे झांसी में बसने लगे और झासी में रौनक लौटने लगी। लेकिन दुर्भाग्य ने अभी भी झांसी का पीछा नहीं छोड़ा था। सन १८६७ में वर्षा न होंने के कारण सारी फसलें नष्ट हो गईं। सन १८६८-६९ में भयंकर अकाल पडा जिसमें काफी जनहानि हुई। १८७२ में एकबार फिर महामारी फैली लेकिन सिंधिया ने बड़े धैर्य के साथ जनता की यथासंभव मदद की तथा लोगों का विश्वास बनाए रखा। १८८० तक आते-आते जनजीवन सामान्य हो गया।
स्थिति के सामान्य होते ही अंग्रेजों की नियत पलट गई और उन्होंने सिंधिया पर झांसी को बापिस करने का दबाव डालना शुरू कर दिया। झांसी एनकुम्बेरेड एक्ट १८८२ पारित कर दिया। अंत में अंग्रेजों की दोस्ती और सद्भावना के नाम पर सिंधिया ने झांसी का राज्य अंग्रेजों को दे दिया, इसके बदले सिंधिया को ग्वालियर का किला वापिस मिला जिस पर सन १८५८ से अंग्रेजों का कब्जा था। (देखिये इम्पीरियल गजेटियर खंड-२ हिस्टरी आफ ब्रिटिश रूल पेज ५२१)

Monday, March 29, 2010

आसमानी पत्थर की जहाँगीरी तलवार

३० फर्वर्दीन १०३० फारसी (१९ मार्च 1621)



सुवह का बख्त था। जलंधर के परगने के एक गाँव में किसान अपने हल बैल लिए खेतों पर काम करने के लिए जा रहे थे कि अचानक पूर्व दिशा से एक तेज रोशनी की लकीर उन्हें अपनी ओर आती हुई दिखी। उसे देखकर लोग डर कर कांपने लगे। जब तक लोग कुछ समझ पाते वह रोशनी एक जोरदार धमाके के साथ पास के एक खेत में जा गिरी। एक क्षण के लिए लोगों के होश उड़ गए, जब उन्हें होश आया तो उन्होंने अपने एक आदमी को इस घटना की सूचना देने के लिए परगने के आमिल मुहम्मद सैद के पास भेजा। घटना की गंभीरता को देखते हुए आमिल तुरंत गाँव की ओर चल दियावहां जाकर उसने देखा कि धरती दश-बारह गज के घेरे में इतनी बुरी तरह जल गई थी कि घास का एक भी तिनका तक नहीं बचा। धरती अब भी गर्म थी, उसने गहराई तक खोदने का हुक्म दिया। बहुत गहराई तक खोदने पर उन्हें एक गर्म लोहे का टुकड़ा मिला। उस लोहे के टुकड़े को वह अपने घर ले आया। घर आकर उसने उसे एक थैले में रखा औरसील लगाकर जहांगीर के पास आगरा भेज दिया।



जहांगीर ने बड़ी उत्सुकता के साथ उस आसमानी लोहे को देखा और उसे अपने सामने तुलवाया। उसका बजन १६० तोले था। उसने उस्ताद दौउद को इससे एक तलवार, एक खंजर और एक चाक़ू बनाने का हुक्म दिया। लेकिन जब वह लौट कर आया तो उसने बताया की वह भट्टी की आंच सहन नहीं कर पाया और तुकडे तुकडे हो गया। तब जहांगीर ने हुक्म दिया की अगर एसी बात है तो इसमें साधारण लोहा मिलाओ। जहांगीर के आदेशानुसार तीन हिस्सा आसमानी लोहा तथा एक हिस्सा साधारण लोहा मिला कर दो तलवारें, एक खंजर और एक चाक़ू बनाया गया। इन पर अन्य लोहे की पालिश कर जहांगीर के सामने पेश किया।









Saturday, March 27, 2010

राशि वाले जहाँगीरी सिक्के

आमतौर पर जहाँगीरी सिक्कों के एक ओर परम्परानुसार उसका का नाम तथा दूसरी ओर स्थान, माह और साल अंकित होता था। लेकिन सन १६१८ में उसके दिमाग में यह बात आई कि माह की जगह उस राशि का चिन्ह अंकित होना चाहिए जो उस माह में पड़ती हो। मेष राशि के महीने के सिक्के पर मेढ़ा, वृष राशि के महीने के सिक्कों पर सांड तथा अन्य महीनों में ढले सिक्कों पर उस महीने की राशि के चिन्ह अंकित होने चाहिए। यह उसकी अपनी खोज थी, इसके पहले इस तरह के सिक्के कभी नहीं ढले।

Tuesday, March 23, 2010

अंग्रेजी कैलेंडर

जिसे हम बोल चाल में अंग्रेजी कैलेंडर कहते है उसका प्राराम्मिक नाम जुलियन कैलेंडर था। जुलियन कैलेंडर को जुलिउस सीजर ने सन ४५ ई॰ पू॰ चलाया था। इस कैलेंडर में एक वर्ष की अबधि ३६५.२५ दिनों की थी। जो मिश्र के कैलेंडर से ली गई थी। भारत में प्रचलित ३६५.२५६४ दिनों का नक्षत्र वर्ष कैलेंडर तथा ३६५.२४२२ के अयन वर्ष से यह कैलेंडर भिन्न था। इसमें १२८ वर्ष में एक दिन का अंतर आ जाता था
ईसाई धर्म ग्रंथो में ईसा के पुनर्जीवित होने की घटना का वर्णन है। उसमे यह उल्लेख है कि जिस दिन ईसा पुनर्जीवित हुए उस दिन दिन और रात बराबर थे। सन ३२५ ई॰ में ईसा के पुनर्जीवित होने के दिन की खोज हुई। २१ मार्च को दिन और रात बराबर थे इसलिए इसे विर्नल एकुइनोक्स डे घोषित कर दिया।
सन १९८२ ई॰ में पोप ग्रेगरी ने यह पता चलाया कि २१ मार्च सन १५८२ को दिन रात बराबर नहीं हैं वह तो १० दिन पहले ही निकल चुका है। जुलियन कैलेंडर में यह अंतर अयन वर्ष की अवधि से मेल न होने के कारण आया था। यह अंतर एक वर्ष मे०.००७८ दिन का था। इस अंतर को समाप्त करने के लिये यदि जुलियन कैलेंडर जब से शुरू हुआ उसे आधार मानते तो सन १५८२ मे १२ दिन का अंतर आ रहा था एसी स्थिति में ११ से २२ मार्च तक की तिथियों का लोप करना पड़ता चूँकि २१ मार्च को विर्नल एकुइनोक्स डे घोषित किया जा चुका था इसलिए २१ मार्च को बचाने के लिये पोप ग्रेगरी ने सन ३२५ को आधार मान कर ४ अक्टूबर के अगले दिन १० तारीखों का लोप कर १५ अक्टूबर १५८२ का दिन घोषित किया। इस संशोधित कैलेंडर को ही ग्रेगोरियन कैलेंडर कहा जाता है
पोप ग्रेगरी के इस संशोधित कैलेंडर को केथलीकों ने तो तत्काल स्वीकार कर लिया था लेकिन Protestent ने जिसमे बिट्रेन भी शामिल है ने १७० साल बाद सन १७५२ में स्वीकार किया। उन्होंने २ सितम्बर सन १७५२ के अगले दिन ११ तारीखों का लोप कर १४ सितम्बर सन १७५२ की तारीख नियत की।
अंगरेजी कैलेण्डर की इस उठा पटक का परिणाम यह हुआ की १८वी सदी के पूर्व की भारतीय इतिहास की सारी तिथियाँ गढ़बढ़ा गईं।

Friday, March 12, 2010

जहाँगीरी सिक्के

मुग़ल शासन काल में जहाँगीरी सिक्कों का अपना एक अलग महत्व है। वो देखने में सुन्दर तथा शुद्धता की द्रष्टि में विश्वसनीय थे। जहांगीर ने सोने, चंदे और ताम्बे के सिक्के ढलवाये तथा हर बजन के सिक्कों का अलग-अलग नाम रखा। उसने अपने शासन के अंतिम दसक में नूरजहाँ के नाम के सिक्के भी ढलवाए।
जहांगीर का सोने का सबसे बढ़ा सिक्का १०० तोले का था जो १ किलो १६३ ग्राम बजन के बराबर है। उसका नाम नूर-ऐ-शाही था। आज के बाजार भाव से १ किलो १६३ ग्राम सोने का मूल्य १९ लाख २० हजार रुपया होता है। इसके अलावा ५० तोले का नूर-इ-सुलतानी, २० तोले का नूर- इ-दौलत १० तोले का नूर-इ-करम। ५ तोले का नूर-ऐ-मिहर, १ तोले का नूरे-जहांत, १/२ तोले का रवानी सिक्का था।
जहांगीर ने चांदी के सिक्के भी ढलवाए तथा उनके अलग-अलग नाम थे। १०० तोले का सिक्का कोकाबा-ऐ-ताली, ५० तोला का कोकाबा-ऐ-बख्त, १० तोले का खैर-ऐ-काबुल ५ तोले का कौकाब-ऐ-साद, १ तोला का जहाँगीरी, १/२ तोला का सुल्तानी, तथा १/४ तोला का एशायारी था।