प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की समाप्ति के बाद अंग्रेजों ने पिन्क्सेय को झाँसी डिविजन का कमिश्नर नियुक्त किया। उस समय झाँसी एक लुटा पिटा वेचिराग शहर था। जनरल रोज ने जो क़त्ल-ए-आम किया था, उसमें हजारों लोग मारे गए थे। जो लोग किसी तरह बच गए, उन्होंने दतिया में शरण ले ली थी। वो इतने डरे हुए थे कि झांसी का नाम सुनते ही काँप जाते थे। जब कभी उनके सामने झांसी का जिक्र आता तो वे बस यही कहते "झांसी गले की फांसी, दतिया गले का हार"। पिन्क्सेय ने झांसी को आबाद करने की बहुत कोशिस की पर वो सफल नहीं हुआ। अंत में जब अंग्रेजों से झांसी का राज्य नहीं सम्भला तो उन्होंने सन १८६२ में उसे सिंधिया को सौंप दिया। इसतरह झांसी ग्वालियर राज्य का एक भाग हो गया।
सिंधिया ने झांसी को फिर से बसाने में बड़ी मेहनत की। उसने लोगों का विश्वास जीतने के लिए अनेकों जनहित के कार्य किये, तब कहीं धीरे-धीरे लोगों का विश्वास सिंधिया पर हुआ और वे झांसी में बसने लगे और झासी में रौनक लौटने लगी। लेकिन दुर्भाग्य ने अभी भी झांसी का पीछा नहीं छोड़ा था। सन १८६७ में वर्षा न होंने के कारण सारी फसलें नष्ट हो गईं। सन १८६८-६९ में भयंकर अकाल पडा जिसमें काफी जनहानि हुई। १८७२ में एकबार फिर महामारी फैली लेकिन सिंधिया ने बड़े धैर्य के साथ जनता की यथासंभव मदद की तथा लोगों का विश्वास बनाए रखा। १८८० तक आते-आते जनजीवन सामान्य हो गया।
स्थिति के सामान्य होते ही अंग्रेजों की नियत पलट गई और उन्होंने सिंधिया पर झांसी को बापिस करने का दबाव डालना शुरू कर दिया। झांसी एनकुम्बेरेड एक्ट १८८२ पारित कर दिया। अंत में अंग्रेजों की दोस्ती और सद्भावना के नाम पर सिंधिया ने झांसी का राज्य अंग्रेजों को दे दिया, इसके बदले सिंधिया को ग्वालियर का किला वापिस मिला जिस पर सन १८५८ से अंग्रेजों का कब्जा था। (देखिये इम्पीरियल गजेटियर खंड-२ हिस्टरी आफ ब्रिटिश रूल पेज ५२१)
Thursday, June 17, 2010
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